हम नए जमाने की नारी हैं..

जो सम्मान देना जानते हैं

तो पाना भी जानते हैं।

देह मेरी ,

हल्दी तुम्हारे नाम की ।

हथेली मेरी ,

मेहंदी तुम्हारे नाम की ।

सिर मेरा ,

चुनरी तुम्हारे नाम की ।

मांग मेरी ,

सिन्दूर तुम्हारे नाम का ।

माथा मेरा ,

बिंदिया तुम्हारे नाम की ।

नाक मेरी ,

नथनी तुम्हारे नाम की ।

गला मेरा ,

मंगलसूत्र तुम्हारे नाम का ।

कलाई मेरी ,

चूड़ियाँ तुम्हारे नाम की ।

पाँव मेरे ,

महावर तुम्हारे नाम की ।

उंगलियाँ मेरी ,

बिछुए तुम्हारे नाम के ।

बड़ों की चरण-वंदना

मै करूँ ,

और’सदा-सुहागन’का आशीष

तुम्हारे नाम का ।

और तो और –

करवाचौथ/बड़मावस के व्रत भी

तुम्हारे नाम के ।

यहाँ तक कि

कोख मेरी/ खून मेरा/ दूध मेरा,

और बच्चा ?

बच्चा तुम्हारे नाम का ।

घर के दरवाज़े पर लगी

‘नेम-प्लेट’तुम्हारे नाम की ।

और तो और –

मेरे अपने नाम के सम्मुख

लिखा गोत्र भी मेरा नहीं,

तुम्हारे नाम का ।

सब कुछ तो

तुम्हारे नाम का…

नम्रता से पूछती हूँ ?

आखिर तुम्हारे पास…

क्या है मेरे नाम का?


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