Rudrashtakam रुद्राष्टकम
श्री रुद्राष्टकम महाकवि तुलसीदास जी द्वारा लिखा था | रुद्राष्टक (Rudrashtakam) भगवान जी की प्रार्थना हैं जिसमे उनके रूप, सौन्दर्य, बल का भाव विभोर चित्रण किया गया हैं |रुद्राष्टक(Rudrashtakam )र काव्य संस्कृत भाषा में लिखा गया हैं | महाशिवरात्रि शुभकामनाये
कोई भी श्रद्धालु ज्यादा कुछ न करके यदि प्रभु शिवजी का ध्यान करते हुए रामचरित मानस से ली गई इस मंत्रमुग्द करने वाली स्तोत्र का श्रद्धापूर्वक पाठ करें, तो वह शिवजी की कृपा उस पर बनी रहती है। यह स्तोत्र बहुत थोड़े समय में आसानी से कण्ठस्थ हो जाता है। श्रावण मास में यह रुद्राष्टक बहुत प्रसिद्ध और फलदायी होता है।
नमामीशमीशान निर्वाणरूपं विभुंव्यापकं ब्रह्मवेदस्वरूपम् 🕉️
निजंनिर्गुणं निर्विकल्पंनिरीहं चदाकाशमाकाशवासं भजेहम् 🕉️
निराकारमोङ्कार मूलं तुरीयं गिरिज्ञानगोतीत मीशंगिरीशम् 🕉️
करालंमहाकालकालं कृपालं गुणागारसंसारसारं नतोहम् 🕉️
तुषाराद्रिसङ्काश गौरं गम्भीरं मनोभूतकोटि प्रभाश्रीशरीरम् 🕉️
स्फुरन्मौलिकल्लोलिनी चारुगाङ्गं लस्त्फालबालेन्दु भूषं महेशम् 🕉️
चलत्कुण्डलं भ्रूसुनेत्रं विशालं प्रसन्नाननंनीलकण्ठं दयालुम्🕉️
मृगाधीशचर्माम्बरं मुण्डमालं प्रियं शङ्करं सर्वनाथंभजामि 🕉️
प्रचण्डंप्रकृष्टं प्रगल्भंपरेशम् अखण्डम्अजं भानुकोटिप्रकाशम् 🕉️
त्रयीशूल निर्मूलनं शूलपाणिं भजेहंभवानीपतिंभावगम्यम् 🕉️
कलातीतकल्याण कल्पान्तरी सदासज्जनानन्ददाता पुरारी 🕉️
चिदानन्दसन्दोह मोहापकारी प्रसीदप्रसीद प्रभोमन्मधारी 🕉️
न यावद्उमानाथ पादारविन्दं भजन्तीहलोके परेवानाराणाम् 🕉️
न तावत्सुखंशान्ति सन्तापनाशं प्रसीदप्रभो सर्वभूताधिवास 🕉️
रुद्राष्टकमिदं प्रोक्तं विप्रेण हरतोषये 🕉️
ये पठन्ति नरा भक्त्या तेषां शम्भुः प्रसीदति 🕉️
ॐ नमः शिवायः
रुद्रष्टकम भावार्थ
हे मोक्षरूप, विभु, व्यापक ब्रह्म, वेदस्वरूप ईशानदिशा के स्वामी और सबके ईश्वर शिवजी , मैं आपको प्रणाम करता हूं। निजस्वरूप में स्थित (अर्थात् मायादिरहित), (मायिक) गुणों से रहित, भेदरहित, इच्छारहित, चेतन आकाश स्वरूप एवं आकाश को ही वस्त्र रूप में धारण करने वाले दिगम्बर (अथवा आकाश को भी आच्छादित करने वाले) आपको मैं प्रणाम करता हूँ।🙏🕉️
निराकार, ओंकार के मूल, तुरीय (तीनों गुणों से अतीत), वाणी, ज्ञान और इन्द्रियों से परे, कैलाशपति, विकराल, महाकाल के भी काल, कृपालु, गुणों के धाम, संसार से परे आप परमेश्वर को मैं प्रणाम करता हूँ।🙏🕉️
वो हिमाचल के समान गौरवर्ण तथा गंभीर हैं, जिनके शरीर में करोड़ों कामदेवों की ज्योति एवं शोभा है, जिनके सिर पर सुंदर गंगाजी विराजमान हैं, जिनके ललाट पर द्वितीया का चंद्रमा और गले में सर्प सुशोभित है उनको मैं प्रणाम करता हूँ।🙏🕉️
जिनके कानों में कुण्डल शोभा पा रहे हैं. सुन्दर भृकुटी है और विशाल नेत्र हैं, जो प्रसन्न मुख है , नीलकण्ठ और दयालु हैं. सिंह छाल का वस्त्र धारण किए और मुण्डमाल पहने हैं, उन सबके प्यारे और सबके स्वामी श्री शंकरजी को मैं प्रणाम करता हूं।🙏🕉️
जो रुद्ररूप हैं , श्रेष्ठ, तेजस्वी हैं , परमेश्वर, अखण्ड, अजन्मे, करोड़ों सूर्यों के समान प्रकाश वाले हैं, तीनों प्रकार के दुःखों को निर्मूल करने वालेहैं, हाथ में त्रिशूल धारण किए, प्रेम के द्वारा प्राप्त होने वाले भवानी(पार्वती) के पति श्री शंकरजी को मैं प्रणाम करता हूँ🕉️🙏
जो कलाओं से परे हैं, कल्याणस्वरूप, कल्प का अंत (प्रलय) करने वाले हैं, सज्जनों को सदा आनंद देने वाले, त्रिपुर के शत्रु, सच्चिदानंदघन, मोह को हरने वाले हैं, मन को मथ डालने वाले कामदेव के शत्रु हैं, हे प्रभो! प्रसन्न होइए, प्रसन्न होइए।🙏🕉️
जब तक मनुष्य श्रीपार्वतीजी के पति के चरणकमलों को नहीं भजते, तब तक उन्हें न तो इहलोक में और न ही परलोक में सुख-शान्ति सुभाग्य मिलती है और अनके कष्टों का भी नाश नहीं हो पाता है. अत: हे समस्त जीवों के हृदय में निवास करने वाले प्रभो, भगवान शिव प्रसन्न होइए.🙏🕉️
है प्रभु मैं न तो योग जानता हूँ,न जप और न तो पूजा ही। हे शम्भो! मैं तो सदा-सर्वदा आपको ही प्रणाम करता हूँ। हे प्रभो! बुढ़ापा तथा जन्म और मृत्यु के दुःख समूहों से जलते हुए मुझ दुःखी की दुःख से रक्षा कीजिए। हे ईश्वर! हे शम्भो! मैं आपको प्रणाम करता हूँ 🙏🕉️
भगवान् शिव की स्तुति का यह अष्टक उन शंकरजी की तुष्टि प्रसन्नता के लिए ब्राह्मण द्वारा कहा गया। जो मनुष्य इसे भक्तिपूर्वक पढ़ते हैं, सुनते है उन पर भगवान् शम्भु प्रसन्न होते हैं ।🙏🕉️
हर हर महादेव
Har har mahadev