भगवान परशुराम जी एक ऐसे चरित्र हैं जिनको बहुत गलत तरीके से जाना गया है।
बहुत कम लोग जानते हैं कि इनका जन्म इंदौर के पास हुआ था, उधर आज भी एक पहाड़ी है जिसका नाम ही “जानापाव” है मतलब जा ना पाओगे 😂। उधर भगवान परशुराम का एक मंदिर है।
इनका असली नाम “राम” था ,शिवजी से परशु मिला तो परशुराम हो गए।
पिता जमदग्नि सप्तऋषियों में से एक थे। सप्तऋषि भी अमर माने जाते है क्योंकि जब भी धरती पर जीवन समाप्त होकर नया जीवन शुरू होता है तो सप्तऋषि ही ज्ञान को बचा कर रखते हैं ताकि मानव जाति को शून्य से शुरू न करना पड़े।
एक बार कार्तवीर्य/सहस्त्रबाहु जो हैहयवंशी क्षत्रिय था उसकी नज़र जमदग्नि की गाय पर पड़ गई, वो उस कामधेनु को छीन कर ले गया। ये एक तरह की तानाशाही थी जो परशुराम से सहन नही हुई। उन्होंने सहस्त्रबाहु को युद्ध मे मार दिया और कामधेनु वापस ले आये। ये वही सहस्त्रबाहु था जिसने रावण को हराकर अपने पास बांध कर रख लिया था, इसको मारने वाले परशुराम कितने वीर रहे होंगे 🙏
फिर सहस्त्रबाहु के पुत्रों ने धोखे से जमदग्नि को मार डाला। पिता की मृत्यु से दुखी परशुराम ने हैहयवंशी क्षत्रियों की सेना को 21 बार मार डाला। छोटे बच्चे,स्त्रियां बचते थे तो कुल फिर खड़ा हो जाता था।
परशुराम का कहना सही था। जमदग्नि एक सप्तऋषि थे,जब क्षत्रियों ने इनका सम्मान नही किया तो आम जनता का तो क्या ही करते होंगे।इसलिए वो पहले “ब्राह्मण योद्धा” बने जिनसे क्षत्रिय डरते थे,उनकी लड़ाई पिता के बदला लेने से ज्यादा न्याय की थी।
परशुराम ने इतिहास तो बनाया ही,वो भविष्य में भी महत्वपूर्ण योगदान देंगे। जब भगवान विष्णु का अंतिम अवतार”कल्कि” धरती पर आएंगे तो उनको शस्त्र की शिक्षा देने का काम परशुराम जी का होगा। तब तक वो अमर हैं।
जय भगवान परशुराम 🙏