1. या देवी सर्वभेतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
नवरात्रि के दूसरे दिन माता के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है।
ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह की शासक और भाग्य की दाता हैं, इस दिन माता की पूजा अर्चना करने से मंगल दोष से मिलती है मुक्ति और सभी कष्टों का होता है नाश।हजारों वर्षों तक कठोर तपस्या के बाद मां ब्रह्मचारिणी को प्राप्त हुए थे भगवान शिव।
नवरात्रि के दूसरे दिन माता के दूसरे स्वरूप मां ब्रह्मचारिणी की पूजा का विधान है। ब्रह्मचारिणी का स्वरूप बहुत ही सादा और भव्य है. मां ब्रह्माचारिणी के नाम में ही उनकी शक्तियों की महिमा का वर्णन मिलता है। ब्रह्म का अर्थ होता है तपस्या और चारिणी का अर्थ होता है आचरण करने वाली। अर्थात तप का आचरण करने वाली शक्ति को हम बार-बार नमन करते हैं। माता के इस स्वरूप की पूजा करने से तप, त्याग, संयम, सदाचार आदि की वृद्धि होती है। जीवन के कठिन से कठिन समय में भी इंसान अपने पथ से विचलित नहीं होता है। अन्य देवियों की तुलना में वह अतिसौम्य, क्रोध रहित और तुरंत वरदान देने वाली देवी मां हैं इस दिन विधि विधान से मां ब्रह्मचारिणी की पूजा अर्चना करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं और विशेष फल की प्राप्ति होती है। मां ब्रह्मचारिणी के एक हांथ में माला और दूसरे हाथ में कमंडल विराजमान है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार ये माता का अविवाहित स्वरूप है। पौराणिक कथाओं के अनुसार मां पार्वती ने भगवान शिव को पति के रूप में पाने के लिए कई हजार वर्षों तक ब्रम्हचारी रहकर घोर तपस्या की थी। माता की इस तपस्या के कारण उनका नाम ब्रह्मचारिणी पड़ा।
नवरात्रि के दूसरे दिन पूजित ब्रह्मचारिणी आंतरिक जागरण का प्रतिनिधित्व करती हैं। मां सृष्टि में ऊर्जा के प्रवाह, कार्यकुशलता और आंतरिक शक्ति में विस्तार की जननी हैं। ब्रह्मचारिणी इस लोक के समस्त चर और अचर जगत की विद्याओं की ज्ञाता हैं। इनका स्वरूप श्वेत वस्त्र में लिपटी हुई कन्या के रूप में है, जिनके एक हाथ में अष्टदल की माला और दूसरे में कमंडल है। यह अक्षयमाला और कमंडल धारिणी ब्रह्मचारिणी नामक दुर्गा शास्त्रों के ज्ञान और निगमागम तंत्र-मंत्र आदि से संयुक्त हैं। भक्तों को यह अपनी सर्वज्ञ संपन्न विद्या देकर विजयी बनाती हैं। ब्रह्मचारिणी का स्वरूप बहुत ही सादा और भव्य है। अन्य देवियों की तुलना में वह अतिसौम्य, क्रोध रहित और तुरंत वरदान देने वाली देवी हैं।
माता को हरा रंग अत्यंत प्रिय है। इस दिन विधि विधान से माता की पूजा अर्चना कर गुड़हल का फूल चढ़ाने व मिठाई का भोग लगाने से तप, त्याग, संयम और सदाचार जैसे गुणों में वृद्धि होती है। शास्त्रों के अनुसार मां ब्रह्मचारिणी मंगल ग्रह की शासक और भाग्य की दाता है, माता भक्तों के सभी कष्टों का निवारण करती हैं। ऐसे में आइए जानते हैं मां ब्रह्मचारिणी की पूजा विधि, सामग्री, मंत्र, आरती, शुभ मुहूर्त, कहानी और व्रत कथा के बारे में।
माता ब्रह्मचारिणी का पूजा मंत्र
मां ब्रह्मचारिणी पूजन के मंत्र –
1. या देवी सर्वभेतेषु मां ब्रह्मचारिणी रूपेण संस्थिता।
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः।।
2. दधाना कर मद्माभ्याम अक्षमाला कमण्डलू।
देवी प्रसीदतु मयि ब्रह्मचारिण्यनुत्तमा।।
3. ब्रह्मचारयितुम शीलम यस्या सा ब्रह्मचारिणी.
सच्चीदानन्द सुशीला च विश्वरूपा नमोस्तुते.
4. मां ब्रह्मचारिणी का स्रोत पाठ
तपश्चारिणी त्वंहि तापत्रय निवारणीम्।
ब्रह्मरूपधरा ब्रह्मचारिणी प्रणमाम्यहम्॥
शंकरप्रिया त्वंहि भुक्ति-मुक्ति दायिनी।
शान्तिदा ज्ञानदा ब्रह्मचारिणीप्रणमाम्यहम्॥
5. मां ब्रह्मचारिणी का कवच
त्रिपुरा में हृदयं पातु ललाटे पातु शंकरभामिनी।
अर्पण सदापातु नेत्रो, अर्धरी च कपोलो॥
पंचदशी कण्ठे पातुमध्यदेशे पातुमहेश्वरी॥
षोडशी सदापातु नाभो गृहो च पादयो।
मां दुर्गा के दूसरे स्वरूप ब्रह्मचारिणी की पूजा शास्त्रीय विधि से की जाती है। सुबह शुभ मुहूर्त में मां दुर्गा की उपासना करें और मां की पूजा में पीले या सफेद रंग के वस्त्र का उपयोग करें। माता का सबसे पहले पंचामृत से स्नान कराएं, इसके बाद रोली, अक्षत, चंदन आदि अर्पित करें। मां ब्रह्मचारिणी की पूजा में गुड़हल या कमल के फूल का ही प्रयोग करें। माता को दूध से बनी चीजों का ही भोग लगाएं। इसके साथ ही मन में माता के मंत्र या जयकारे लगाते रहें। इसके बाद पान-सुपारी भेंट करने के बाद प्रदक्षिणा करें। फिर कलश देवता और नवग्रह की पूजा करें। घी और कपूर से बने दीपक से माता की आरती उतारें और दुर्गा सप्तशती, दुर्गा चालीसा का पाठ करें। पाठ करने के बाद सच्चे मन से माता के जयकारे लगाएं। इससे माता की असीम अनुकंपा प्राप्त होगी।