दिल की दुनिया कुछ और ही होती है
क्या करे अपना बस चला ही नही
इश्क की उम्र ठीक नही जवानी तक
साथ सफ़र झुर्रियों तक होना चाहिए
तेरे बिन भीग तो लूगी मगर
बारिश में हरा होने क लिए जड़ें जरूरी है
आँखें खफा है तुमसे
मानाने पर पिघल न जायें
आँखों में रहा दिल में उतर कर नहीं देखा
कश्ती के मुशाफिर ने समुन्दर नहीं देखा
उस शख्श को बिछड़ने का सलीका भी नहीं
जाते हुए खुद को मेरे पास छोड़ गया
दो चेहरों का बोझ न उठाया कीजे
दिल न मिले तो हाथ न मिलाया कीजे
आज मैंने फिर जज्बात भेजे है
आज तुमने फिर अल्फाज समझे है
इलायची क दानो हा मुकद्दर है अपना
महक उतनी ही बिखरी घिसते गये जितना