happy basant panchami

happy basant panchami

या कुन्देन्दुतुषारहारधवला या शुभ्रवस्त्रावृता

या वीणावरदण्डमण्डितकरा या श्वेतपद्मासना।

या ब्रह्माच्युत शंकरप्रभृतिभिर्देवैः सदा वन्दिता

सा मां पातु सरस्वती भगवती निःशेषजाड्यापहा॥

शुक्लां ब्रह्मविचार सार परमामाद्यां जगद्व्यापिनीं

वीणा-पुस्तक-धारिणीमभयदां जाड्यान्धकारापहाम्‌।

हस्ते स्फटिकमालिकां विदधतीं पद्मासने संस्थिताम्‌

वन्दे तां परमेश्वरीं भगवतीं बुद्धिप्रदां शारदाम्‌॥२॥

 

happy basant panchami

happy saraswati puja

बहारों में बहार बसंत

मीठा मौसम मीठी उमंग

रंग बिरंगी उड़ती आकाश में पतंग

तुम साथ हो तो है इस ज़िंदगी का और ही रंग

happy basant panchami happy saraswati puja

 

मिले मां का आशीर्वाद आपको, हर दिन, हर वार

हो मुबारक आपको बसंत पंचमी का त्यौहार

बसंत पंचमी की शुभकामनाएं💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐🙏

सहस शील हृदय में भर दे
जीवन त्याग से भर दे
संयम सत्य स्नेह का वर दे
माँ सरस्वती आपके जीवन को हर्षोल्लास से भर दे ।
💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐🙏

happy basant panchami happy saraswati puja

मां सरस्वती का वसंत है त्योहार

आपके जीवन में आये सदा बहार

सरस्वती हर पल विराजे आपके द्वार

हर काम आपका हो जाए सफल

💐💐💐💐💐💐💐💐💐💐🙏

happy basant panchami happy saraswati puja

जीवन का यह बसंत, आप सबको खुशियां दे अनंत,
प्रेम और उत्साह का, भर दे जीवन में रंग,

happy basant panchami happy saraswati puja

 

वसंत पंचमी की सुंदर पौराणिक कथा :

जब चतुर्भुज सुंदरी प्रकट हुई मां सरस्वती के रूप में
वसंत को ऋतुओं का राजा कहा जाता है। इस ऋतु में मौसम खूबसूरत हो जाता है। फूल, पत्ते, आकाश, धरती सब पर बहार आ जाती है। सारे पुराने पत्ते झड़ जाते हैं और नए फूल आने लगते हैं। प्रकृति के इस अनोखे दृश्य को देख हर व्यक्ति का मन मोह जाता है। मौसम के इस सुहावने मौके को उत्सव की तरह मनाया जाता है। वसंत पंचमी को श्री पंचमी तथा ज्ञान पंचमी भी कहते हैं।

सृष्टि की रचना का कार्य जब भगवान विष्णु ने ब्रह्मा जी को दिया तब खुश नहीं थे। सृष्टि निर्माण के बाद उदासी से भरा वातावरण देख वे विष्णु जी के पास गए और सुझाव मागा। फिर विष्णु जी के मार्गदर्शन अनुसार उन्होंने अपने कमंडल से जल लेकर धरती पर छिड़का। तब एक चतुर्भुज सुंदरी हुई, जिसने जीवों को वाणी प्रदान की। यह देवी विद्या, बुद्धि और संगीत की देवी थीं, उनके आने से सारा वातावरण संगीतमय और सरस हो उठा इसलिए उन्हें सरस्वती देवी कहा गया।

इसलिए इस दिन सरस्वती देवी का जन्म बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है और इनकी पूजा भी की जाती है। इस दिन लोग अपने घरों में सरस्वती यंत्र स्थापित करते हैं। इस दिन 108 बार सरस्वती मंत्र के जाप करने से अनेक फायदे होते हैं। इस दिन बच्चों की जुबान पर केसर रख कर नीचे दिए गए मंत्र का उच्चारण कराया जाता है…इससे वाणी, बुद्धि और विवेक का शुभ आशीष मिलता है।

मंत्र-‘ॐ ऐं महासरस्वत्यै नमः’

वसंत ऋतु के बारे में ऋग्वेद में भी उल्लेख मिलता है। प्रणो देवी सरस्वती वाजेभिर्वजिनीवती धीनामणित्रयवतु। इसका अर्थ है सरस्वती परम् चेतना हैं। वे हमारी बुद्धि, समृद्धि तथा मनोभावों की सुरक्षा करती हैं… भगवान श्री कृष्ण ने गीता में वसंत को अपनी विभूति माना है और कहा है ‘ऋतुनां कुसुमाकरः’

मिले मां का आशीर्वाद आपको, हर दिन, हर वार

हो मुबारक आपको बसंत पंचमी का त्यौहार

मां सरस्वती विद्या, बुद्धि, ज्ञान और वाणी की अधिष्ठात्री देवी हैं तथा शास्त्र ज्ञान को देने वाली है। भगवती शारदा का मूलस्थान अमृतमय प्रकाशपुंज है। जहां से वे अपने उपासकों के लिए निरंतर पचास अक्षरों के रूप में ज्ञानामृत की धारा प्रवाहित करती हैं। उनका विग्रह शुद्ध ज्ञानमय, आनन्दमय है। उनका तेज दिव्य एवं अपरिमेय है और वे ही शब्द ब्रह्म के रूप में पूजी जाती हैं।

सृष्टि काल में ईश्वर की इच्छा से आद्याशक्ति ने अपने को पांच भागों में विभक्त कर लिया था। वे राधा, पद्मा, सावित्री, दुर्गा और सरस्वती के रूप में प्रकट हुई थीं। उस समय श्रीकृष्ण के कण्ठ से उत्पन्न होने वाली देवी का नाम सरस्वती हुआ। श्रीमद्देवीभागवत और श्रीदुर्गा सप्तशती में भी आद्याशक्ति द्वारा अपने आपको तीन भागों में विभक्त करने की कथा है। आद्याशक्ति के ये तीनों रूप महाकाली, महालक्ष्मी और महासरस्वती के नाम से संसार में जाने जाते हैं।

भगवती सरस्वती सत्वगुणसंपन्न हैं। इनके अनेक नाम हैं, जिनमें से वाक्‌, वाणी, गिरा, भाषा, शारदा, वाचा, श्रीश्वरी, वागीश्वरी, ब्राह्मी, गौ, सोमलता, वाग्देवी और वाग्देवता आदि प्रसिद्ध हैं। ब्राह्मणग्रंथों के अनुसार वाग्देवीर ब्रह्मस्वरूपा, कामधेनु, तथा समस्त देवों की प्रतिनिधि हैं। ये ही विद्या, बुद्धि और सरस्वती हैं। इस प्रकार देवी सरस्वती की पूजा एवं आराधना के लिए माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि वसंत पंचमी को ही इनका अवतरण दिवस माना जाता है।

अतः वागीश्वरी जयंती एवं श्री पंचमी के नाम से भी इस तिथि को जाना जाता है। इस दिन इनकी विशेष अर्चा-पूजा तथा व्रतोत्सव के द्वारा इनके सांनिध्य प्राप्ति की साधना की जाती है। सरस्वती देवी की इस वार्षिक पूजा के साथ ही बालकों के अक्षरारंभ एवं विद्यारंभ की तिथियों पर भी सरस्वती पूजन का विधान है।

भगवती सरस्वती की पूजा हेतु आजकल सार्वजनिक पूजा पंडालों की रचना करके उसमें देवी सरस्वती की मूर्ति स्थापित करने एवं पूजन करने का प्रचलन दिखाई पड़ता है, किंतु शास्त्रों में वाग्देवी की आराधना व्यक्तिगत रूप में ही करने का विधान बतलाया गया है।

भगवती सरस्वती के उपासक को माघ मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को प्रातःकाल में भगवती सरस्वती की पूजा करनी चाहिए।

इसके एक दिन पूर्व अर्थात्‌ माघ शुक्ल पूजा करनी चाहिए। इसके एक दिन पूर्व अर्थात्‌ माघ शुक्ल चतुर्थी को वागुपासक संयम, नियम का पालन करें। इसके बाद माघ शुक्ल पंचमी को प्रातःकाल उठकर घट (कलश) की स्थापना करके उसमें वाग्देवी का आह्वान करे तथा विधिपूर्वक देवी सरस्वती की पूजा करें।

पूजन कार्य में स्वयं सक्षम न हो तो किसी ज्ञानी कर्मकांडी या कुलपुरोहित से दिशा-निर्देश से पूजन कार्य संपन्न करें।

भगवती सरस्वती की पूजन प्रक्रिया में सर्वप्रथम आचमन, प्राणयामादि के द्वारा अपनी बाह्यभ्यंतर शुचिता संपन्न करे। फिर सरस्वती पूजन का संकल्प ग्रहण करे।

इसमें देशकाल आदि का संकीर्तन करते हुए अंत में,,,,

‘यथोपलब्धपूजनसामग्रीभिः भगवत्याः सरस्वत्याः पूजनमहं करिष्ये।’

पढ़कर संकल्प जल छोड़ दें। तत्पश्चात आदि पूजा करके कलश स्थापित कर उसमें देवी सरस्वती साद आह्वान करके वैदिक या पौराणिक मंत्रों का उच्चारण करते हुए उपचार सामग्रियां भगवती को सादर समर्पित करे।

‘ श्री ह्यीं सरस्वत्यै स्वाहा’ इस अष्टाक्षर मंत्र से प्रन्येक वस्तु क्रमशः श्रीसरस्वती को समर्पण करे। अंत में देवी सरस्वती की आरती करके उनकी स्तुति करे। स्तुति गान के अनन्तर सांगीतिक आराधना भी यथासंभव करके भगवती को निवेदित गंध पुष्प मिष्आत्रादि का प्रसाद ग्रहण करना चाहिए। पुस्तक और लेखनी में भी देवी सरस्वती का निवास स्थान माना जाता है तथा उसकी पूजा की जाती है।

देवी भागवत एवं ब्रह्मवैवर्तपुराण में वर्णित आख्यान में पूर्वकाल में श्रीमन्नरायण भगवान ने वाल्मीकि को सरस्वती का मंत्र बतलाया था। जिसके जप से उनमें कवित्व शक्ति उत्पन्न हुई थी। भगवान नारायण द्वारा उपदिष्ट वह अष्टाक्षर मंत्र इस प्रकार है- ‘श्रीं ह्वीं सरस्वत्यै स्वाहा।’ इसका चार लाख जप करने से मंत्र सिद्धि होती है।

आगम ग्रंथों में इनके कई मंत्र निर्दिष्ट हैं, जिनमें ‘अं वाग्वादिनि वद वद स्वाहा।’

यह सबीज दशाक्षर मंत्र सर्वार्थसिद्धिप्रद तथा सर्वविद्याप्रदायक कहा गया है। ब्रह्मवैवर्तपुराण में उनका एक मंत्र इस प्रकार है- ‘ॐ ऐं ह्वीं श्रीं क्लीं सरस्वत्यै बुधजनन्यै स्वाहा।’

ऐसा उल्लेख आता है कि महर्षि व्यास जी की व्रतोपासना से प्रसन्न होकर ये उनसे कहती हैं- व्यास! तुम मेरी प्रेरणा से रचित वाल्मीकि रामायण को पढ़ो, वह मेरी शक्ति के कारण सभी काव्यों का सनातन बीज बन गया है। उसमें श्रीरामचरित के रूप में मैं साक्षात्‌ मूर्तिमती शक्ति के रूप में प्रतिष्ठित हूं-

पठ रामायणं व्यास काव्यबीजं सनातनम्‌। यत्र रामचरितं स्यात्‌ तदहं तत्र शक्तिमान॥

भगवती सरस्वती के इस अद्भुत विश्वविजय कवच को धारण करके ही व्यास, ऋष्यश्रृंग, भरद्वाज, देवल तथा जैगीषव्य आदि ऋषियों ने सिद्धि पाई थी। इस कवच को सर्वप्रथम रासरासेश्वर श्रीकृष्ण ने गोलोक धाम के वृंदावन नामक अरण्य में रासोत्सव के समय रासमंडल के वृंदावन नामक अरण्य में रासोत्सव के समय रासमंडल में ब्रह्माजी से कहा था।

तत्पश्चात ब्रह्माजी ने गंधमादन पर्वतपर भृगुमुनि को इसे दिया था। भगवती सरस्वती की उपासना (काली के रूप में) करके ही कवि कुलगुरु कालिदास ने ख्याति पाई। गोस्वामी जी कहते हैं कि देवी गंगा और सरस्वती दोनों एक समान ही पवित्रकारिणी हैं। एक पापहारिणी और एक अविवेक हारिणी हैं-

पुनि बंदउं सारद सुरसरिता। जुगल पुनीत मनोहर चरिता।
मज्जन पान पाप हर एका। कहत सुनत एक हर अबिबेका।

भगवती सरस्वती विद्या की अधिष्ठातृ देवी हैं और विद्या को सभी धनों में प्रधान धन कहा गया है। विद्या से ही अमृतपान किया जा सकता है। विद्या और बुद्धि की अधिष्ठात्‌ देवी सरस्वती की महिमा अपार है। देवी सरस्वती के द्वादश नाम हैं। जिनकी तीनों संध्याओं में इनका पाठ करने से भगवती सरस्वती उस मनुष्य की जिह्वा पर विराजमान हो जाती हैं।

⛳जय माँ सरस्वती⛳
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