नवरात्रि के पर्व में मां दुर्गा के 9 अलग अलग स्वरूपों की पूजा होती है. मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप में स्कंदमाता की पूजा करते हैं. स्कंदमाता को मां दुर्गा का मातृत्व परिभाषित करने वाला स्वरूप माना जाता है. स्कंदमाता के चार भुजाएं हैं जिनमें दांयी तरफ की ऊपरी भुजा में भगवान स्कंद गोद में लिए हैं और नीचे की भुजा में कमल पुष्प थामे हैं जबकि बांयी तरफ की ऊपरी भुजा वरमुद्रा में और नीचे की भुजा में कमल है. स्कंदमाता का वाहन शेर है. मां स्कन्दमाता की आराधना करने वाले भक्तों को सुख शान्ति एवं शुभता की प्राप्ति होती है। देवासुर संग्राम के सेनापति भगवान स्कंद की माता होने के कारण मां दुर्गा के पांचवें स्वरूप को स्कंदमाता के नाम से जानते हैं। स्कंदमाता हमें सिखाती हैं कि जीवन स्वयं ही अच्छे-बुरे के बीच एक देवासुर संग्राम है व हम स्वयं अपने सेनापति हैं। हमें सैन्य संचालन की शक्ति मिलती रहे। इसलिए स्कंदमाता की पूजा करनी चाहिए। इस दिन साधक का मन विशुद्ध चक्र में अवस्थित होना चाहिए, जिससे कि ध्यान वृत्ति एकाग्र हो सके। यह शक्ति व सुख का अनुभव कराती हैं।
पूजन विधि और भोग
प्रात: काल स्नान करने के बाद स्वच्छ वस्त्र धारण करें. पूजा के स्थान पर स्कंदमाता की मूर्ति स्थापित करें. इसके बाद पूजन आरंभ करें. मां की प्रतिमा को गंगाजल से शुद्ध करें. इसके बाद फूल चढ़ाएं. मिष्ठान और 5 प्रकार के फलों का भोग लगाएं. 6 इलायची भी भोग में चढ़ाई जाती हैं. कलश में पानी भरकर उसमें कुछ सिक्के डालें. इसके बाद पूजा का संकल्प लें. स्कंदमाता को रोली-कुमकुम लगाएं. मां की आरती उतारें तथा मंत्र का जाप करें.
ध्यान:
वन्दे वांछित कामार्थे चन्द्रार्धकृतशेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा स्कन्दमाता यशस्वनीम्।।
धवलवर्णा विशुध्द चक्रस्थितों पंचम दुर्गा त्रिनेत्रम्।
अभय पद्म युग्म करां दक्षिण उरू पुत्रधराम् भजेम्॥
पटाम्बर परिधानां मृदुहास्या नानांलकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल धारिणीम्॥
प्रफुल्ल वंदना पल्ल्वांधरा कांत कपोला पीन पयोधराम्।
कमनीया लावण्या चारू त्रिवली नितम्बनीम्॥
स्तोत्र पाठ:
नमामि स्कन्दमाता स्कन्दधारिणीम्।
समग्रतत्वसागररमपारपार गहराम्॥
शिवाप्रभा समुज्वलां स्फुच्छशागशेखराम्।
ललाटरत्नभास्करां जगत्प्रीन्तिभास्कराम्॥
महेन्द्रकश्यपार्चिता सनंतकुमाररसस्तुताम्।
सुरासुरेन्द्रवन्दिता यथार्थनिर्मलादभुताम्॥
अतर्क्यरोचिरूविजां विकार दोषवर्जिताम्।
मुमुक्षुभिर्विचिन्तता विशेषतत्वमुचिताम्॥
नानालंकार भूषितां मृगेन्द्रवाहनाग्रजाम्।
सुशुध्दतत्वतोषणां त्रिवेन्दमारभुषताम्॥
सुधार्मिकौपकारिणी सुरेन्द्रकौरिघातिनीम्।
शुभां पुष्पमालिनी सुकर्णकल्पशाखिनीम्॥
तमोन्धकारयामिनी शिवस्वभाव कामिनीम्।
सहस्त्र्सूर्यराजिका धनज्ज्योगकारिकाम्॥
सुशुध्द काल कन्दला सुभडवृन्दमजुल्लाम्।
प्रजायिनी प्रजावति नमामि मातरं सतीम्॥
स्वकर्मकारिणी गति हरिप्रयाच पार्वतीम्।
अनन्तशक्ति कान्तिदां यशोअर्थभुक्तिमुक्तिदाम्॥
पुनःपुनर्जगद्वितां नमाम्यहं सुरार्चिताम्।
जयेश्वरि त्रिलोचने प्रसीद देवीपाहिमाम्॥
मां स्कंदमाता की आरती:
जय तेरी हो स्कंदमाता
पांचवां नाम तुम्हारा आता
सब के मन की जानन हारी
जग जननी सब की महतारी
तेरी ज्योत जलाता रहूं मैं
हरदम तुम्हें ध्याता रहूं मैं
कई नामो से तुझे पुकारा
मुझे एक है तेरा सहारा
कही पहाड़ों पर है डेरा
कई शहरों में तेरा बसेरा
हर मंदिर में तेरे नजारे
गुण गाये तेरे भगत प्यारे
भगति अपनी मुझे दिला दो
शक्ति मेरी बिगड़ी बना दो
इन्दर आदी देवता मिल सारे
करे पुकार तुम्हारे द्वारे
दुष्ट दत्य जब चढ़ कर आये
तुम ही खंडा हाथ उठाये
दासो को सदा बचाने आई
‘चमन’ की आस पुजाने आई
मां स्कंदमाता के मंत्र:
सिंहासनगता नित्यं पद्माश्रितकरद्वया.
शुभदास्तु सदा देवी स्कन्दमाता यशस्विनी॥
ॐ देवी स्कन्दमातायै नमः॥