मैं स्त्री

पहाड़ों की चोटी पर ,नवजात बर्फ पिघली है…
दूध में नहाकर चिड़िया,अभी अभी निकली है …
इसे उड़ने दीजिए ना ,न उपहास कीजिए …
पिघलने दीजिए ना बर्फ़ को, न छूकर नाश कीजिए 💐…

अक्षरों को चिन चिन कर, भावों की मिट्टी से…💐
बनाती है छंद महल, प्रेम के गारे और गिट्टी से ….
निज हृदय को, ब्रह्मा विष्णु और महेश कीजिए…
पुनीत हृदय से ,छंद महल में प्रवेश कीजिए …

क्या कभी कपोतिनी को, चुगते हुए देखा है…
नन्हे बीज को मिट्टी तोड़ ,उगते हुए देखा है…
दूषित हाथ लगाने का, ना प्रयास कीजिए…
स्वच्छ मन से… हास विलास कीजिए…💐

फूलों सी महकती है… झरने सी गिरती है ….
निश्छला,मनोरमा ,आंखों के छूने से बिखरती है….
आप अपने बर्ताव में ,बदलाव खास कीजिए…
दृष्टि को अपनी, गुलमोहर पलाश कीजिए…
ऋतु ✍️💐

मैं स्त्री

पहाड़ों की चोटी पर ,नवजात बर्फ पिघली है…
दूध में नहाकर चिड़िया,अभी अभी निकली है …
इसे उड़ने दीजिए ना ,न उपहास कीजिए …
पिघलने दीजिए ना बर्फ़ को, न छूकर नाश कीजिए …

अक्षरों को चिन चिन कर, भावों की मिट्टी से…
बनाती है छंद महल, प्रेम के गारे और गिट्टी से ….
निज हृदय को, ब्रह्मा विष्णु और महेश कीजिए…
पुनीत हृदय से ,छंद महल में प्रवेश कीजिए …

क्या कभी कपोतिनी को, चुगते हुए देखा है…
नन्हे बीज को मिट्टी तोड़ ,उगते हुए देखा है…
दूषित हाथ लगाने का, ना प्रयास कीजिए…
स्वच्छ मन से… हास विलास कीजिए…

फूलों सी महकती है… झरने सी गिरती है ….
निश्छला,मनोरमा ,आंखों के छूने से बिखरती है….
आप अपने बर्ताव में ,बदलाव खास कीजिए…
दृष्टि को अपनी, गुलमोहर पलाश कीजिए…
ऋतु

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