आंकलन

कभी अपने गिरेबान में भी झाँक जाया करो
किसी औरत के चरित्र पर यू ना उंगली उठाया करो

अपनी फ़ितरत तुम ना दिखाया करो
कपड़ों से तुम औरतो का आंकलन ना लगाया करो

खुद की सोच को थोड़ा तो बढाया करो
जरूरत हो तो एक आईना खुद को भी दिखाया करो

अपने अन्दर के जानवर को समझाया करो
अपने दिमाग के घोड़ों को थोड़ा तो दौड़ाया करो

अपने ऐबो को छुपाया ना करो
औरत की आजादी पर सवाल ना उठाया करो

अपने वजूद को भी थोड़ा तो परख जाया करो
झूठे हो सच के साँचे में ना ढल जाया करो

कितने मुखौटे तुमने लगा रखे है
कभी गैरो का और ना अपनों का दिल दुखाया करो

किसी औरत की कोख से ही तो
तुम निकले हो
किसी की रूह को ना कड़वे बोलो से दुखाया करो

औरत पर ही हर बार दोषारोपण ना लगाया करो
कभी खुद भी तो इसका बीड़ा उठाया करो

जब कभी तुम इसकी मुस्कान के पीछे छुपी खरोंचो को जान जाओगे
तब कभी ना कोई इल्ज़ाम लगा पाओगे

अपनी सोच के थोड़े परे भी तो
जाया करो
औरत की राह में कोई अवरुद्ध ना लगाया करो

कभी अपने गिरेबान में भी झाँक जाया करो
किसी औरत के चरित्र पर यू ना उंगली उठाया करो

सिमरन बुटानी

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *